
MUJE PATA HAI KI BAPPA TU MERE SATH ..
TO MUJE KOI FARK NAHI PADTA KI KON MERE KHILAF HAI...
HUM KYA HAI WOH SIRF HUM HI JANTE HAI..
LOG TO SIRF HAMARE BARE MAIN ANDAZA LAGA SAKTE HAI..

HUM KYA HAI SIRF HUM HI JANTE HAI...BAKI TO SIRT ANDAZA LAGA SAKTE HAI...
Love Yourself
स्वयं से प्रेम करें …………
“success is not the key to happiness but happiness is the key to success“
प्रसन्न रहना ही सफल जीवन का राज़ है. ईश्वर ने मनुष्य को बहुत सारी खूबियाँ और अच्छाइयां दी हैं. मनुष्य वो प्राणी है जिसके अन्दर सोचने की और समझने की अपार क्षमता है. जो जीवन को बस यूँ ही जीना या व्यर्थ करना नहीं चाहता. हर व्यक्ति के अन्दर एक बहुत ही प्रबल इच्छा होती है सफल होने की, कुछ कर दिखाने की और अपनी एक पहचान पाने की. कुछ लोग अपनी इस इच्छा को दिन पर दिन बढ़ाते हैं और कुछ लोग समाज या परिश्रम के डर से इसे दबा देते हैं. पर अपने आप से पूछ कर देखिये कि कौन ऐसा जीवन जीना नहीं चाहता जिसमे लोग आप से प्रेम करें और आप को पहचाने. सफलता के कई सारे कारण होते हैं जैसे द्रिढ़ निश्चय, मेहनत करना, सपने देखना और उन्हें पूर्ण करने की दिशा में कार्य करना, सच्चाई, इमानदारी,जोखिम उठाने की क्षमता इत्यादि.
पर सफलता का एक ऐसा कारक भी है जिसे हम अक्सर नज़रंदाज़ कर देते हैं और वो है स्वयं से प्रेम करना. अपने आप से प्रेम करना और अपना आदर करना सफल व्यक्तियों का एक बहुत ही प्रबल गुण होता है.
कभी आराम से बैठ कर सोचिये कि किस से सबसे अधिक प्रेम करते हैं आप? whom do you love most? ये बात अगर आप किसी से पूछें तो आम तौर पर जवाब आयेगा my parents, my children, my spouse etc etc जितने लोग उतने जवाब. अगर आप गहराई से सोचें तो इस प्रश्न का आप को एक ऐसा उत्तर मिलेगा जिसे आप मुश्किल से ही accept कर पाएंगे. और वो जवाब है ‘अपने आप से’. जी हाँ! इस दुनिया में सबसे अधिक प्रेम आप स्वयं से ही करते हैं. अगर देखा जाये तो हर छोटे से छोटा औए बड़े से बड़ा काम हम अपनी ख़ुशी के लिए ही तो करते है? चाहे वो विवाह के बंधन में बंधना हो, कोई नौकरी करना हो, माँ बनना हो, किसी की मदद करना हो, किसी को दुखी करना हो कुछ भी. हाँ! अंतर सिर्फ ख़ुशी पाने के स्रोत में होता है कुछ को दूसरों को ख़ुशी दे कर सुख मिलता है और कुछ को दूसरों के कष्ट से. महात्मा गाँधी, मदर टेरेसा और दुनिया के कई समाज सुधारक क्या इन्होनें अपनी ख़ुशी के बारे में नहीं सोचा? निःसंदेह सोचा, ये वे लोग थे जिन्हें दूसरों को प्रसन्न देख कर ख़ुशी मिलती थी. कुछ लोग स्वयं से प्रेम करने को अनुचित समझते हैं क्यों कि लोगों के मन में अक्सर ये धारणा रहती है कि जो व्यक्ति स्वयं से प्रेम करता है वो selfish होता है और दूसरों से प्रेम कर ही नहीं सकता. तो इसका उत्तर ये है कि अपने आप से प्रेम करना कभी ग़लत हो ही नहीं सकता क्यों कि जो व्यक्ति अपने आप से प्रेम नहीं करता वो किसी और से सच्चा प्रेम कर ही नहीं सकता. जो अपने आप से संतुष्ट नहीं वो किसी और को संतुष्ट कैसे रख सकता है?
‘unless you fill yourself up first you will have nothing to give to anybody’
अपने आप से प्रेम करने का अर्थ है स्वयं को निखारना, अपने अन्दर की अच्छाइयों को खोजना, अपने लिए सम्मान प्राप्त करना, अपना self statement positive रखना, अपने आप को प्रेरित करते रहना और अपने साथ हुई हर अच्छी बुरी घटना की जिम्मेदारी खुद पे लेना. ये हमेशा याद रखिये कि आप दूसरों को प्रेम और सम्मान तभी बाँट पाएंगे जब आप के पास वो वस्तु प्रचुर मात्र में होगी.स्वयं से प्रेम करना उतना ही स्वाभाविक है जिंतना कि सांस लेना. Bible में कहा भी गया है कि हमें दूसरों से भी उतना ही प्रेम करना चाहिए जितना हम स्वयं से करते हैं. परन्तु कभी – कभी हम अपने आप से प्रेम करना भूल जाते हैं. मशहूर psychologist Sigmund Freud ने मनुष्य के अन्दर दो प्रकार की instinct का ज़िक्र किया है एक constructive और एक distructive. कुछ लोग अपनी भावनाओं का प्रदर्शन constructive तरीके से करते हैं, उन लोगों को अच्छे कार्य करके प्रसन्नता मिलती है और कुछ लोगों को विनाश कर के और दूसरों को तकलीफ पहुंचा कर. अगर आप कोई भी distructive कार्य कर रहे हैं , अपने आप को उदास बनाये हुए हैं और अपने जीवन से निराश हैं तो आप स्वयं से प्रेम नहीं करते. जो व्यक्ति अपने आप से प्रेम नहीं करता वो दूसरों को तो प्रेम दे ही नहीं सकता क्यों कि किसी भी भाव को जब तक आप अपने ऊपर अजमा कर नहीं देखेंगे , उसका स्वाद खुद नहीं चखेंगे तब तक दूसरों के सामने उसे बेहतर बना कर कैसे पेश करेंगे. स्वयं से प्रेम करने का अर्थ ‘मैं ’ से नहीं है बल्कि इसका अर्थ है अपनी अच्छाइयों को पहचान कर उसे बहार निकलना और सही अर्थ में अपने आप को grow करना. मनोचिकित्सा में भी अपने जीवन से निराश और depressed patients के उपचार के लिए उन्हें अपने जीवन का उद्देश्य ढूँढ़ने के लिए अर्थहीनता को दूर करने के लिए कहा जाता है. ज़रा सोचिये कि वो कौन सी मनःस्थिति होती होगी जिसमें मनुष्य आत्म हत्या करने कि ठान लेता है? ऐसी स्थिति केवल और केवल तभी उत्पन्न होती है जब मनुष्य का स्वयं से कोई लगाव नहीं रह जाता. वह किसी वजह से अपने आप से घृणा करने लगता है और अपने आप को दंड देता है. तो सोचिये! कि अपने आप से प्रेम करना कितना ज़रूरी है क्यों कि जिस दिन आप स्वयं से प्रेम करना छोड़ देंगे उस दिन आपके जीवन का अस्तित्व भी नहीं रहेगा क्यों कि ‘it is impossible that one should love god but not love oneself’. क्यों कि अपने जीवन की शुरुआत भी आप से ही है और अंत भी आप से. इसलिए ईश्वर से हमेशा प्रार्थना करनी चाहिए कि वो हमें ऐसे कार्य करने की शक्ति दे जिस से हम स्वयं का आदर कर पाएं. कहा भी गया है कि………
“हमको मन की शक्ति देना मन विजय करें, दूसरों के जय से पहले खुद को जय करें.
